Monday, October 28, 2013

वोह थे खफा हमसे ...,

वोह थे खफा हमसे या हम थे खफा उनसे
बस इसी कशमकश में दूरिया बढती रही ..........

ज़िन्दगी से मेरी आदत नहीं मिलती
मूझे जीने कि सूरत नहीं मिलती
कोई मेरा भी कभी हमसफ़र होता
मूझे ही क्यूँ मुहब्बत नहीं मिलती ...

हर जज्बात को जुबान नहीं मिलती..
हर आरजू को दुआ नहीं मिलती..
मुस्कान बनाये रखो तो साथ है दुनिया..
वर्ना आंसुओ को तो आंखो मे भी पनाह नहीं मिलती...


मुझ में ख़ुशबू बसी उसी की है
जैसे ये ज़िंदगी उसी की है....!

वो कहीं आस-पास है मौजूद
हू-ब-हू ये हँसी उसी की है...!

ख़ुद में अपना दुखा रहा हूँ दिल
इस में लेकिन ख़ुशी उसी की है...!

यानी कोई कमी नहीं मुझ में
यानी मुझ में कमी उसी की है..!

क्या मेरे ख़्वाब भी नहीं मेरे
क्या मेरी नींद भी उसी की है...!!!


देखो तो मुहब्बत की हर राह , किस ओर निकलती है
कहने को ज़िन्दगी है , हर बार ही छलती है
सूरज के मुहाने से , दिन निकलता है
चन्दा तेरी गलियों में अश्क की रात भी ढलती है

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे….!!!

ज़िंदगी हमने सुना था चार दिन का खेल है..
चार दिन अपने तो लेकिन इम्तिहाँ मे खो गए…!!!

तुम अपने अक्स में क्या देखते हो
तुम्हारा अक्स भी तुम सा नहीं है..!
बहुत सोचा है हम ने ज़िंदगी पर
मगर लगता है कुछ सोचा नहीं है….!!!

उनकी महफ़िल में एक उनके सिवा
मुझको हर इक ने ग़ौर से देखा…!
आज क्यों पूछते हो हाल मेरा
आपने कल कुछ और से देखा….!!
मुझपे उठ्ठी निगह ज़माने की
आपने जब भी ग़ौर से देखा…..!!!

1 comment: