Thursday, October 10, 2013

ए खुदा किसी को किसी पर फ़िदा मत करना;
और अगर करे तो फिर उन्हें जुदा मत करना।

दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की
लोगों ने मेरे आँगन से रस्ते बना लिए।

 वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए!
वो खुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए!
कभी तो समझो मेरी खामोशी को!
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जायें!

बहुत अजीब हैं ये बंदिशें मोहब्बत की,
कोई किसी को टूट कर चाहता है,
और कोई किसी को चाह कर टूट जाता है।

तुम्हारी यादों में बीती हर बात अलग है
तुम्हारे साथ हुई हर मुलाकात अलग है
हर शख़्स मेरी ज़िन्दगी छूकर गया
मगर तुम्हारी दोसती की बात अलग है॥

हर हसीं काफिरां के माथे पर
अपनी रहमत का ताज रखता है
तू भी परवरदिगार मेरी तरह
आशिकाना मिज़ाज रखता है।

हमें भी याद रखें जब लिखें तारीख गुलशन की;
कि हमने भी लुटाया है चमन में आशियां अपना।

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

हर कोई हमको मिला पहने हुए नकाब,
अब किसको कहें अच्छा किसको कहें खराब.

कीसी के पास खाने के लिये एक वक्त की रोटी नहीं हे …..
कीसी के पास रोटी खाने के लिए वक़्त ही नहीं हे

ना जाने वो कौन इतना हसीन होगा,
आपके हाथ में जिसका नसीब होगा,
कोई आपको चाहे ये कोई बडी बात नहीं,
जिसको आप चाहो वो खुश नसीब होगा..

जिंदगी जख्म की तस्वीर बनके रह गई,
तू मेरे दिल पे लगी तीर बनके रह गई..
मैं बना फिरता हूं दीवाना तेरे गम में,
तू मेरे पैरों की जंजीर बनके रह गई..

गुज़रे दिनों की भूली हुई बात की तरह,
आँखों में जागता है कोई रात की तरह,
उससे उम्मीद थी की निभाएगा साथ वो,
वो भी बदल गया मेरे हालात की तरह !

Utha kar phool ki patti nzaqat se masal dali.....

Ishare se kaha ham dil ka esa haal karte he !!

वो रूठ जाते हैं अक्सर सिकवा किये बगैर,

और हम भी सह जाते हैं सिकायत किये बगैर.

समझ कर काँच का टुकङा
तरांशा मुझको दुनीयाँ ने
.
बना फिर भी नहीँ
'कंगन' तेरी नाजुक कलाई का ।

यूँ तो रिश्तों में ही रिश्तों की हकीकत है ,
फिर भी बिन आपके ये महफ़िल अधूरी है |


पल-पल इन्तजार किया एक पल के लियेँ
वो पल आया भी तो एक पल के लियेँ
अब तो हर पल इन्तजार हैँ उस पल के लिये
कि वो पल आये फिर से एक पल के लियेँ

खुदा सें कोई बात अन्जान
नही होती.
इन्सान की बंदगी बेईमान नही होती!
कभी तो माँगा होगा हमने एक
प्यारा सा रिश्ता.
वर्ना यूँ ही आपसे पहचान
नही होती...!

 मिली जब भी नजर उनसे धड़कता है हमारा दिल
पुकारे वो उधर हमको, इधर दम क्यों निकलता है..

बहे ये इश्क की थोड़ी हवा अपने भी जानिब कुछ
जरा देखें ये तेवर मौसमों का कब बदलता है...
बदलती जा रही है जिन्दगी, अरमाँ भी बदले हैं
कैसे थामेंगे इस दिल को , जो हर दम ही मचलता है ॥.!!!

मेरी आँखों में बस जाओ ज़रा मुझ पर तरस खाओ
ज़मीनों आसमानों में तुम्हारा ही नज़ारा हो.....!!!

दोस्तों ये महफ़िल आपकी है और सजाना भी आप को ही है
क्यूँ की मै तो बस यही चाहता हूँ की...................
मुस्कुराता हुआ आज हो,
गुनगुनाता हुआ कल हो,
हम रहे या ना रहे ,
खुशियों से भरा आपका हर एक पल हो.......

कदम थक गए है ,
दूर निकलना छोड़ दिया है .
पर ऐसा नहीं के मेने चलना छोड़ दिया है ..
फासले अक्सर मोहब्बत बाधा देते है ,
पर ऐसा नहीं के मेने करीब आना छोड़ दिया है ..

मेने चिरागों से रोशन की है अक्सर अपनी शाम ,
पर ऐसा नहीं के मेने जलना छोड़ दिया है ..
में आज भी अकेला हु दुनिया की भीड़ में ,
पर ऐसा नहीं के मेने ज़माना छोड़ दिया है

वोह रुठते रहे हम मनाते रहे ..
उनकी राहों में पलकें बिछाते रहे ..
उन्होंने कभी पलट के भी न देखा ...
हम आंख झपकने से भीं कतराते रहे....

आता नही हमको राहें वफा दामन बचाना
तुम्ही पर जान दे देगें एक दिन आज़मा लेना......

 तेरी नजाकत को देखकर तेरी इबारत छोड़ दी
जरा हम भी तो देखें हमारी तरह चाहता कौन है

गुनाह करके सज़ा से डरते हैं;
पी के ज़हर दवा से डरते हैं;
दुश्मनों के सितम का खौफ नहीं हमको;
हम तो दोस्तों की बेवफाई से डरते हैं

खुशिया गम का तोहफा देके गुजर जाती है करीब से.
जिसे चाहता है दिल, वो बिछड़ जाते है नसीब से.

वफ़ा की राह में हम ने लूटा दी जिन्दगी अपनी ,
निगाहे देखती है उनकी, फिर भी मुझे अजीब से .

अमीरी इस कदर शहर में फ़ैलाने लगी है पावं को,
की सपने देखने का हक भी,छिनने लगा गरीब से.

दोस्तों ने दोस्ती का फर्ज निभाया कुछ इस तरह,
की हमने खौफ खाना छोड़ दिया अपने सारे रकीब से

रिश्तों का चिराग जलने लगा मतलब की तेल से ,
और हमसब दूर होते चले गये हमदर्दी की तहजीब से

एक उमर हुई बिछड़े उसको ,
 वो जाने कहाँ है लेकिन आज भी आती है यादों की रवानी में ,
आज भी बसेरा है आँखों के पानी में , एक उमर हुई बिछड़े उसको .................!!

एक मीठी मुस्कान ले आना ,जब आना तुम
जीने के अरमान ले आना ,जब आना तुम


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